अर्थसत्ता : चिली का अनुभव और मुक्त बाज़ार
अमर तिवारी जीका यह स्तम्भ "अर्थसत्ता"हम आज से जनपक्ष पर शुरू कर रहे हैं। अर्थशास्त्र के बाजारू सिद्धांतों की तह मे जाकर उनकी पड़ताल करने और अब तक के अनुभवों के आधार पर उनकी समीक्षा का उनका यह प्रयास...
View Articleसरहदों के पार- रोहित वेमुला : अभिनव श्रीवास्तव
रोहित वेमुला को गुजरे हुये दस दिन से भी ज्यादा हो गये हैं। इन दस दिनों में हममें से कुछ लोगों ने रोहित को कभी दुःख और अफ़सोस तो कभी क्षोभ और आक्रोश के साथ याद किया है। दुःख और अफ़सोस इसलिये क्योंकि रोहित...
View Articleअंध राष्ट्रभक्ति और उन्मादी आज़ादी के नारों के बीच ज़रूरी सवाल : अक्षत
जे एन यू के छात्र तथा एस ऍफ़ आई और आग़ाज़ से जुड़े अक्षत सेठ ने 9 तारीख को कैपस में हुई घटना पर विस्तार से लिखा है जो दोनों पक्षों को कटघरे में खडा करता है और बहुत गंभीरता से पढ़े जाने की माँग करता है....
View Articleजे एन यू परिघटना पर लेखकों का बयान
हम हिन्दी के लेखक देश के प्रमुख विश्वविद्यालय जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 9 फरवरी को हुई घटना के बाद से जारी पुलिसिया दमन पर पर गहरा क्षोभ प्रकट करते हैं। दुनिया भर के विश्वविद्यालय खुले...
View Articleसन 42, कम्युनिस्ट, संघी और सच
द्वितीय विश्व युद्ध के आरंभ होने पर कम्युनिस्ट पार्टी ने पीस पालिसी की घोषणा करते हुए नारा दिया कि ‘ये जंग है साम्राज्यशाही, हम न देगें एक पाई ना एक भाई.’ पार्टी ने सेना में भर्ती के ब्रिटिश अभियान तथा...
View Articleभगत सिंह : कितने दूर, कितने पास
यह लेख मैंने दखल विचार मंच द्वारा प्रकाशित भगत सिंह के धर्म एवं जाति सम्बन्धी लेखों की पुस्तिका "इन्क़लाब ज़िन्दाबाद"की भूमिका के रूप मे लिखा था। आज भगत सिंह-राजगुरु-सुखदेव की शहादत दिवस पर यह लेख देश मे...
View Articleरमा कंवर हत्या काण्ड की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट
ग्राम पचलासा छोटा, जिला डूंगरपुर, राजस्थान में 4 मार्च , 2016 को सुश्री रमाकुंवर को बीच चौराहे पर भीड़ द्वारा जिंदा जला दिया गया. सुश्री रमाकुंवर का 'अपराध'यह था कि उन्होंने और प्रकाश सेवक ने सात वर्ष...
View Articleनाकोहस पढ़ते हुए कुछ फुटकर नोट्स
मगर चिराग़ ने लौ को संभाल रखा है[1]· अशोक कुमार पाण्डेय----------------------------नाकोहस जब कहानी के रूप में आई थी तब इस पर टिप्पणी करते लिखा था – “समय का बदलना अक्सर महसूस नहीं होता. उसे कुछ...
View Articleजल-संकट(लातूर-शहर)-1: यह हमारी सभ्यता के अंत की शुरुआत है
साथी देवेश और कुछ अन्य मित्र लातूर में थे कल तक...उन्होंने यह रिपोर्ट भेजी है याद कीजिये 2016 के बीत गए महीनों को. हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या से शुरू हुआ...
View Articleआधुनिकता-भावनात्मकता-प्रतिरोध - लाल्टू
वरिष्ठ कवि और चिन्तक लाल्टू जी ने यह लेख इस नोट के साथ भेजा था _____________________भोपाल से एक पत्रिका आती है 'गर्भनाल'।उनके लिए बीच-बीच में लिखता रहा हूँ। मैंने देखा है कि बड़े-बड़े लोग लिखते हैं...
View Articleदो ख़त कश्मीर से
बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद क्श्मीर में भारतीय सेना और भारत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के नाम मेजर गौरव आर्या ने एक खुला पत्र लिखा था तो उसके जवाब में एक कश्मीरी युवक ने भी खुला पत्र लिखा।...
View Articleकश्मीर : एक संक्षिप्त इतिहास
---अशोक कुमार पाण्डेय कश्मीर भारतीय उपमहाद्वीप का वह इकलौता क्षेत्र है जिसका इतिहास लिखित रूप में अबाध, श्रेणीबद्ध और उपलब्ध है.[1]कल्हण द्वारा लिखी गई “राजतरंगिणी” कश्मीर के राजवंशों और राजाओं...
View Articleबिटिया के सहारे राजनीति मत चमकाइये दयाशंकर जी
अंजुले की यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश में इन दिनों चल रही उस राजनीति का पर्दाफ़ाश करती है, जो वोटों की फ़सल उगाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है.नसीम अंकल, मुझे बताएं कहाँ आना है , आपके पास पेश होने के...
View Articleसुनो, दाना मांझी सुनो..
दाना माझी का क़िस्सा अखबारों से सोशल साइट्स तक वायरल है. दुःख, क्षोभ, गुस्सा सब लाइव है और इन सबके बीच जो अनुपस्थित है वह है उस वायरस की चिंता जो इस मुल्क में रोज़ दीना मांझी पैदा करता है. वे आंकड़ों के...
View Articleक़िस्सा आधी माँ और आधी बेवाओं का
यह क़िस्सा एक दोस्त के आदेश पर क़िस्सागोई के लिए लिखा गया था. किन्हीं वज़ूहात से वह मुमकिन नहीं हुआ तो सोचा यहीं आप सबको पढ़वा दूँ. कोई मित्र किसी रूप में उपयोग करना चाहे तो एकदम कर सकता है. बस मुझे सूचना...
View Articleउदयपुर मे "प्रतिरोध का सिनेमा"रुकवाने की संघी कोशिश
प्रज्ञा जोशीकल 14 अक्तूबर से शुरू होने वाले चौथे उदयपुर फ़िल्म फेस्टिवल को फेस्टिवल शुरू होने से ठीक एक दिन पहले की शाम को संघ और प्रसाशन ने दबाव बनाकर रुकवाने की भरपूर कोशिश की. फिल्मोत्सव के आयोजकों...
View Articleआप झूठ फैला रहे हैं साक्षी महाराज - शम्सुल इस्लाम
भारतमेंमुसलमानोंकीआबादीकेबारेमेंहिंदुत्वादीसफ़ेदझूठचित्र गूगल से साभार गेरुआ वस्त्र-धारीसाक्षीजोस्वयंकोमहाराजकहलानापसंदकरतेहैं, एकऐसेवयक्तिहैंजोभारतकेप्रजातान्त्रिक-सेक्युलरसंविधान,...
View Articleब्रिटेन में आम चुनाव के नतीजे: व्यवस्था के विकल्प की उम्मीदों के लिए शुभ...
ब्रिटेन में आम चुनाव के परिणाम कॉर्पोरेट मीडिया घरानों और सर्वेक्षण एजेंसियों के लिए झटका हैं जिन्होंने इस बार प्रधानमंत्री थेरेसा मे और उनकी कंजरवेटिव पार्टी को जिताने के लिए पूंजीवादी लोकतंत्र के...
View Articleनब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों का पलायन : कुछ तथ्य
· अशोक कुमार पाण्डेय 1- 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में आतंकवाद के चरम के समय बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों ने घाटी से पलायन किया. पहला तथ्य संख्या को लेकर. कश्मीरी पंडित समूह और कुछ...
View Articleसंगीत और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह : कुलदीप कुमार
पश्चिमके साथ साक्षात्कार की प्रक्रिया में उन्नीसवीं सदी में हिंदुओं और मुसलमानों ने अपनी-अपनी अस्मिता को अपने “गौरवपूर्ण अतीत” के आलोक में समझने और परिभाषित करने का प्रयास किया और इस प्रक्रिया में...
View Articleदूधनाथ सिंह : एक प्रतिबद्ध स्वर
कुलदीप कुमार ने यह लेख आज द हिन्दू के अपने कॉलम "हिन्दी बेल्ट"लिए लिखा था...किसे पता था कि यह श्रद्धांजलि लेख में बदल जाएगा। जनपक्ष की ओर से हिन्दी के प्रतिबद्ध कहानीकार और आलोचक दूधनाथ सिंह जी को सादर...
View Articleब्रह्मराक्षस : ऑर्गेनिक बुद्धिजीवी की तलाश
अशोक कुमार पाण्डेयमुक्तिबोध की कविताओं को पढ़ते हुए लगातार यह लगता है जैसे सिर्फ़ दो कविताओं को लिखने या पूरा करने के लिए वह लगातार लिख रहे थे – ‘अँधेरे में’ और ‘ब्रह्मराक्षस।’ यह अनायास नहीं है कि दोनों...
View Articleकुलदीप नैयर - एक क़द का उठ जाना
तस्वीर द हिन्दू से साभार ● ओम थानवीकुलदीप नैयर का जाना पत्रकारिता में सन्नाटे की ख़बर है। छापे की दुनिया में वे सदा मुखर आवाज़ रहे। इमरजेंसी में उन्हें इंदिरा गांधी ने बिना मुक़दमे के ही धर लिया था।...
View Articleबलात्कार को अपनी राजनीति के खाँचे में न सेट करें - शुभा
हैदराबाद की हालिया घटना के सन्दर्भ में जो प्रतिक्रिया सामने आई हैं वह बहुत विडम्बनामय और कहीं-कहीं जुगुप्सा पैदा करने वाली हैं.कुछ अपवाद भी हैं तो वे अपवाद ही हैं.पढ़े-लिखे सज्जन लोगों की जो हाय...
View Articleप्रिय पूंजीवाद, मार्क्स अभी अप्रासंगिक नहीं हुये है
पुरुषोत्तम अग्रवाल अनुवाद : तरुण भारद्वाज मार्क्स यदि जीवित होते तो 5 मई 2018 को 202 वर्ष के हो गए होते। तो क्या? क्या मार्क्स के विचारों को याद करने और उन पर चिंतन करने से अब कोई फायदा है ? क्या यह एक...
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