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तरुण और पप्पू का अपराध - कुलदीप कुमार

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जाने माने पत्रकार और स्तम्भ लेखक कुलदीप कुमारनेशनल दुनिया में एक कालम लिखते हैं 'बेबाक'. इस बार उन्होंने यह स्तम्भ. पप्पू यादव की किताब पर नामवर सिंह की टिप्पणी और तरुण तेजपाल प्रसंग पर केन्द्रित किया है. हमारे अनुरोध पर उन्होंने इस विचारोत्तेजक लेख को जनपक्ष के लिए साभार उपलब्ध कराया. उम्मीद है आगे भी उनका सहयोग मिलता रहेगा.
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अभी तक राजनीति के अपराधीकरण की ही समस्या थी
,अब अपराध के राजनीतिकरण की समस्या भी पैदा हो गई है। तरुण तेजपाल द्वारा अपनी एक कनिष्ठ महिला सहयोगी के साथ यौन दुर्व्यवहार,जो वर्तमान कानून में दी गई परिभाषा के अनुसार बलात्कार की श्रेणी में आता है,की घटना प्रकाश में आने के बाद से ही अपराध के राजनीतिकरण की कोशिशें सामने आ रही हैं। ऐसा नहीं कि अब अचानक ऐसा हो रहा है। पहले भी ये हमारे सामने थीं लेकिन अब जिस तरह से ये आपस में गुंथकर एक साथ पेश की जा रही हैं,उनसे स्थिति की भयावहता का पता चलता है। कुल मिलाकर हालत यह है कि अगर एक चोर पकड़ा जाता है,तो अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए उसके पास सबसे बड़ा सुबूत और तर्क यह होता है कि फलां तो मुझसे भी बड़ा चोर है,उसे तो आप कुछ भी नहीं कह रहे। क्योंकि मैं आपके खिलाफ हूँ,इसलिए मुझ पर इल्जाम लगाए जा रहे  हैं और एक सोची-समझी साजिश के तहत मुझे फंसाया जा रहा है। यानी आज अपराध नहीं,अपराध करने वाले का राजनीतिक रंग अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।



जब तक तरुण तेजपाल कांड प्रकाश में नहीं आया था
,भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को किसी महिला की निजता,उसके उल्लंघन के लिए पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल,उनके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का सत्ता और अधिकार के इस दुरुपयोग के पीछे स्वयं होना,बालिग महिला द्वारा सुरक्षा के कोई भी मांग न किए जाने पर भी उसे सुरक्षा देने के बहाने उसकी चौबीस घंटे निगरानी करवाना और भंडाफोड़ होने पर यह कहना कि यह तो उसके पिता के अनुरोध पर किया गया था (क्या महिला नाबालिग थी जो उसके पिता को अनुरोध करना पड़ा?),इस सबकी कोई चिंता नहीं थी। लेकिन तरुण तेजपाल यौन उत्पीड़न कांड सामने आते ही महिलाओं की गरिमा के लिए उन्हीं भाजपा नेताओं के मन में सरोकार हिलोरे लेने लगे जिन्होंने विजयवर्गीय और विनय कटियार जैसे नेताओं पर लगे आरोपों और उनके बयानों पर कभी कोई विशेष चिंता प्रकट नहीं की। यह इसी तरह था जैसे उन्हें 29 वर्ष बाद भी दिल्ली और अन्य स्थानों पर हुई सिखविरोधी हिंसा और उसके पीछे कांग्रेस की भूमिका की तो आज तक याद है,लेकिन 2002 में गुजरात में हुई व्यापक और नियोजित मुसलिमविरोधी हिंसा और उसमें राज्य प्रशासन और राजनीतिक नेताओं की भूमिका कभी याद नहीं आती जबकि एक पूर्व मंत्री को इस मामले में जेल भी हो चुकी है और वह आजकल पर जमानत पर हैं।



कांग्रेस का हाल इससे भिन्न नहीं। मार्क्सवादी नेता अजित सरकार की हत्या के आरोपी (हालांकि उन्हें अदालत ने बरी कर दिया है लेकिन सीबीआई इस फैसले के खिलाफ अपील करने जा रही है,इसलिए वह अभी तक आरोपमुक्त नहीं हुए हैं) पप्पू यादव ने अपनी आत्मकथा लिखी है। उनकी आत्मकथा के लोकार्पण के अवसर पर---इस समारोह के बारे में प्रकाशित समाचारों के अनुसार वहाँ मार्क्सवादी कहे जाने वाले आलोचक नामवर सिंह ने उन्हें एक मामले में सरदार पटेल से भी बेहतर नेता करार दिया और कहा कि राजनीति में बहुत कम लोग पढ़ते-लिखते हैं और सरदार पटेल तक आत्मकथा नहीं लिख पाये! ---कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि इन पर तो एक ही हत्या की साजिश का आरोप लगा था,लेकिन हजारों की हत्या की साजिश के आरोपी व्यक्ति को कहाँ बैठाने की बात की जा रही है,यह सबके सामने है।” जाहिर है कि उनका इशारा नरेंद्र मोदी की ओर था। लेकिन दिग्विजय सिंह सिखविरोधी दंगे,उनमें कांग्रेस सरकार और उसके नेताओं की जगजाहिर भूमिका और उन्हें उचित ठहराने वाले राजीव गांधी के बयान---“जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है”—को भूल ही गए। यानी आज अपराध नहीं,अपराधी की राजनीति महत्वपूर्ण है। भ्रष्टाचार के बारे में भी यही सच है। कांग्रेस के लिए बेल्लारी के रेड्डी बंधु और बंगारू लक्ष्मण भ्रष्ट हैं तो भाजपा के लिए सुरेश कलमाडी और दूसरे कांग्रेस नेता। जब सुखराम कांग्रेस में थे तो भ्रष्ट थे,भाजपा के पास आए तो गले से लगाने काबिल हो गए।  अपराध के राजनीतिकरण का इससे अधिक स्पष्ट उदाहरण और क्या हो सकता है?



तरुण तेजपाल भी इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज उनके बहाने बिना नाम लिए कांग्रेस नेता और केन्द्रीय मंत्री कपिल सिबल पर निशाना साध रही हैं,गोवा में भाजपा की सरकार है जिसने उनके खिलाफ रपट दर्ज करके मामले की जांच शुरू की है और खुद तरुण तेजपाल सोनिया गांधी के नाम खुला पत्र लिखकर राष्ट्र की सेवा में स्वयं को और पाने पुत्र राहुल गांधी को समर्पित करने के लिए न केवल उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा कर चुके हैं बल्कि प्रियंका को भी राजनीति में उतारने का पुरजोर आग्रह कर चुके हैं। इसलिए गोवा सरकार की उनके खिलाफ कार्रवाई उनकी सेकुलर पत्रकारिता के खिलाफ कार्रवाई है,उनके द्वारा दो दिन लगातार एक युवा महिला सहयोगी को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाने और अपनी कई ई-मेल में इसे स्वीकारने के बाद की गई कार्रवाई नहीं। कांग्रेस प्रवक्ताओं की भी इस कांड पर प्रतिक्रिया काफी हद तक गुनगुनी रही है। हिन्दी के कुछ विचारकों” का रवैया भी अजीब-सा है। तरुण तेजपाल की कड़ी आलोचना करने के बावजूद राजकिशोर का विचार है कि उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए...!

पहले एक कहावत चलती थी वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति”। तो अब क्या एक नई कहावत गढ़नी पड़ेगी “सेकुलर बलात्कार बलात्कार न भवति”?क्या हम एक ऐसे लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं जहां कानून का शासन है और संवैधानिक व्यवस्था है?

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कुलदीप कुमार लब्ध प्रतिष्ठ पत्रकार हैं तथा द हिन्दू समेत अनेक अंग्रेजी तथा हिंदी अखबारों में नियमित रूप से लिखते हैं. उनका मेल पता है - 
kuldeep.kumar55@gmail.com

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