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मेरी क्रिसमस कथा (तातियाना के लिए) : माइकल येट्स

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जब मैं छोटा था तब ज़्यादातर औरों के उतारे हुए कपड़े पहना करता। पड़ोसियों का बेटा मुझसे साल-दो साल बड़ा था और लगभग मेरी ही साइज़ का था और उसकी उतारी हुई कमीज़ें और पतलूनें मुझे मिलतीं। दादी या मेरी माँ उन्हें छोटा-बड़ा कर देती ताकि वे फिट हो जाएँ। शायद कुछ चचेरे भाइयों के छोटे हो चुके कपड़े भी मेरी आलमारी में पनाह पाते। अब ठीक-ठीक याद नहीं।

पुराने कपड़े पहनना मुझे पसंद नहीं था। मगर दूसरे बच्चे भी पुराने कपड़े ही पहनते इसलिए शर्म की कोई बात नहीं थी। और फिर मैं बेसबाल खेलनेसस्ते उपन्यास और कॉमिक पढ़नेखिलौना रेलगाड़ी तैयार करने और किसी न किसी तरह स्पोर्ट्स से जुड़े खेलों का अविष्कार करने में अपने दिन बिताता। ऐसे में शरीर पर ढंग से फिट न बैठने वाली दो जेबों वाली फलालेन की कमीज़ों और पतलूनों की परवाह किसे थी?

मगर जब बारह और तेरह की उम्र के बीच कहीं तरुणाई की अजीब और परेशान करने वाली आमद हुई तो चीज़ें पहले सी न रहीं। यकायक वह चीज़ें महत्त्वपूर्ण हो गईं जो पहले बिलकुल न थीं। लड़कियाँकारेंकपड़े। अब खेलों और खिलौना ट्रेनों में पहले की तरह मन नहीं लगता।

माता-पिता के कहने पर मैंने अखबार बाँटने का काम शुरू किया। रास्ता लम्बा थातीन मील से भी ज़्यादा लम्बी दूरी में फैले 150 ग्राहक। अखबारों का वज़न ढोते-ढोते मेरे कन्धों पर निशान बन गएखासकर बृहस्पतिवार को तो अखबारों में ठूँसे जाने वाले इश्तहारी काग़ज़ों के  कारण उन बंडलों का वज़न दुगुना हो जाता जो नेल्सन नाम का बूढ़ा हमारे पोर्च में हर दोपहर डाल जाता। दो हफ़्तों के छह डॉलर - मात्र इतनी सी तनख्वाह थी। तनख्वाह इतनी कम थी और काम इतना मुश्किल कि जल्द ही मैंने स्थानीय न्यूज़ स्टैंड पर जाकर अपने मालिकों से बात की और वेतन बढ़ोतरी की माँग की। जिस लड़के ने मुझे वह अखबार बाँटने का रास्ता समझाया था वह अब कॉलेज में दाखिला ले चुका था और मैंने अंदाज़ा लगा लिया था वे किसी और को नहीं समझा पायेंगे क्योंकि सिर्फ मुझे ही उसकी जानकारी थी। ताज्जुब की बात यह हुई की उन्होंने मेरी माँग मंज़ूर कर ली और तनख्वाह बढ़ा कर 9.80 डॉलर कर दी। 

मैंने मान लिया था कि कभी-न-कभी मैं कॉलेज की पढ़ाई करूँगा ही। तो भविष्य में वह खर्चा उठा पाने के लिए मेरी तनख्वाह का ज़्यादातर हिस्सा सीधे बैंक खाते में जाता। माँ और बाबा भी मुझे पड़ोसियों के लॉन की कटाई करने भेजते। उन्होंने अंदाज़ा लगाया होगा कि अगर मैं सप्ताह में छह दिन रोज़ दो से तीन घंटे अखबार के गट्ठे समीप के पहाड़ी इलाके में ढोते फिरने को तैयार हूँतो अपनी मेहनत की कमाई से ज़िन्दगी गुज़ारने की मेरी आकांक्षा कामेरी हसरत का कोई छोर न होगा।

अपने श्रम से मुझे आनंद नहीं मिलता था। मगर पास में पैसे होना ज़रूर पसंद था। जितना पैसा अपने पास रखने की इजाज़त थी वह मैंने बॉलिंग एली मेंबेसबाल के दस्ताने खरीदने में और दो बिलकुल नई ऐरो की कमीज़ें खरीदने में खर्च कर दिया। एक जेब वाली कॉटन की कमीज़ें। बटन-डाउन कमीज़ें। पाँच डॉलर की एक। 1959 में सत्र शुरू होने पर जब मैं हरी वाली कमीज़ पहनकर हाईस्कूल गया तो लगा कि मैं औरों जैसा ही हूँ। या थोड़ा बेहतरख़ासकर तब जब लैटिन की कक्षा में मेरे पीछे की बेंच पर बैठने वाली ख़ूबसूरत लड़की ने कहा कि कमीज़ उसे अच्छी लगी। वह पूरा साल मैं उस लड़की पर फ़िदा रहा।

फिर मुझ पर पत्रिकाओं में आने वाले कपड़ों के इश्तहारों का भूत सवार हो गया। ऐरो और वैन ह्यूज़न की कमीजें या उनसे भी अच्छी हैथअवेज़ और मैनहैटन की। और सबसे पसंदीदा - ब्रुक्स ब्रदर्स की धारियों वाली कमीज़। इनमें से एकऔर साथ में एक जोड़ी फ्लोरशेम के पम्प शू मिल जाएँ तो जन्नत का मज़ा आ जाए। इंसान अगर वस्त्रों से बनता हैतो मेरी ख़्वाहिश महीन कपडे में लपेटे जाने की थी।

लैटिन की कक्षा वाली उस लड़की को छोड़कर हाईस्कूल का वह पहला साल कुछ अच्छा नहीं गुज़रा। विज्ञान की कक्षा के  बाद दो लड़के एक महीने तक लगातार मुझे पीटते रहे। प्रथम वर्ष की बास्केटबाल टीम में मेरा चयन नहीं हो पाया। हर कक्षा के बाद कमरे बदलना चक्कर में डालने वाला होता। नौंवे दर्जे में मैं सबसे कम उम्र का था और मेरे आत्म-विश्वास के लिए यह अच्छी बात नहीं थी। मैं सप्ताहांत का इंतज़ार करता रहता। नवम्बर आने पर थैंक्सगिविंग का और उसके उपरान्त क्रिसमस की लम्बी छुट्टियों का इंतज़ार असह्य हो जाता। 

कम उम्र में आपको थैंक्सगिविंग और क्रिसमस के बीच का अन्तराल अंतहीन प्रतीत होता है। जैसे जैसे दिन चींटी की रफ़्तार से सरक रहे थेवैसे वैसे मैं यह खोजने लगा कि माता-पिता ने हमारे तोहफे कहाँ छुपा रखे हैं। मैंने गिड़गिड़ा कर माँ से दरख्वास्त की मुझे कम से कम एक तोहफा तो खोल कर देख लेने दिया जाएपर वह थीं कि मानती ही न थीं। कुछ नए कपडे मिल जाएँ इस उम्मीद में मैं मरा जा रहा था। नीचे की तरफ तंग होती जाती कमीजेंचिनो पतलूनेंएक जोड़ी बढ़िया से दस्तानेऔर शायद वह पम्प शू का जोड़ा भी।  बेशक मेरे माता-पिता के ध्यान में यह बात आ गई थी कि मैं अब बच्चा नहीं रहा था। मेरे पास नौकरी थी। मेरी आवाज़ बदल रही थीऔर मेरा थुलथुल बदन छरहरा और मज़बूत हो चूका था। मैं वयस्क नहीं था मगर बच्चा भी नहीं था। उन्होंने ज़रूर गौर किया होगा कि लड़कों को दिए जाने वाले तोहफों के हिसाब से मैं बड़ा हो चुका था।

तब घर में चार बच्चे थेदो बहनेंएक भाई और एक मैं। हम अपने तोहफे क्रिसमस की सुबह खोला करते जो अमूमन रात तीन बजे से ही शुरू हो जातीजब हम गुपचुप सीढ़ियों से उतरने लगते और माँ हमें वापिस ऊपर जाने को कहतीं। सुबह पाँच बजे तक वे नर्म पड़ जातींऔर हम सीधे दीवानखाने में पहुँचते। वहाँ क्रिसमस ट्री के नीचे हमारे तोहफों के बक्सों के चार ढेर पड़े हुए होते और हम अपने-अपने बक्सों से रैपिंग पेपर और रिबनें हटाने लगते।

जब मैंने अपने हिस्से का मुआयना किया तो दिल बैठने लगा। बक्सों का साइज़ कुछ ठीक नहीं थाजिन चीज़ों की आरज़ू मुझे थी उन के हिसाब से वे बक्से या तो बहुत छोटे थे या बहुत बड़े। चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने की कोशिश करते हुए मैं भौंचक्का सा उन्हें खोलने लगा। दो साधारण से बोर्ड गेमविमानवाहक पोत का एक प्लास्टिक मॉडल किटऔर सबसे बड़े बक्से में प्लास्टिक की बॉलिंग पिनों का एक सेट और दो गेंदें। क्यातेरह साल के लड़के के लिएये गेम तो छोटे बच्चे के लिए थे,टीनएजर के लिए नहीं। क्या बेकार क्रिसमस है। मैंने झूठमूठ यह दर्शाने की कोशिश की कि मैं खुश हूँ और माँ-बाबा को सभी चीज़ों के लिए शुक्रिया कहा। मगर तुरंत ही मैंने उस बॉलिंग सेट को बेसमेंट में पटक दिया ताकि कहीं मेरे रिश्तेदारजो जल्द ही आने वाले थेउसे देख न लें। अगले दो दिन बड़ी व्यग्रता में बीते कि कहीं मुझे अपने बचकाने तोहफे किसी को दिखाने न पड़ जाएँ। हर बार से अलग मुझे अब इस बात की ख़ुशी थी कि मेरी माँ क्रिसमस के कुछ दिनों बाद सजावटें और क्रिसमस ट्री हटा देतीं और जल्द ही घर ऐसा हो जाता जैसे त्यौहारों का मौसम कभी आया ही न था।

अब मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अपनी निराशा माता-पिता के सामने प्रदर्शित नहीं की। वे तोहफे पाकर मुझे शर्मिंदगी हुई थी,और मैंने अपने दोस्तों को कभी नहीं बताया कि मुझे क्या तोहफे मिले थे। मगर मैंने जोड़-जोड़ कर उस विमानवाहक जलपोत का मॉडल तैयार किया और बड़े गर्व के साथ अपने बेडरूम की मेज पर सजाया। मेरे चाचा कोरियाई युद्ध के दौरान ऐसे ही एक जहाज़ पर खानसामा रहे थे,उन्हें वह मॉडल दिखा कर मुझे बहुत खुशी हुई। और जहाँ तक उस अहमकाना बॉलिंग गेम की बात है,मैंने बेसमेंट में अभ्यास कर-कर के प्लास्टिक की गेंदों और पिनों को घिसा डाला। उस में मुझे उतना ही मज़ा आया जितना अपने ख़याली बेसबाल खेलों में आता थाऔर मैं जानता हूँ कि उस से मेरी बॉलिंग में काफी सुधार आया था। वह सब शोर जो मैं करता उस से मेरे माता-पिता परेशान हो जाते होंगेलेकिन वे कहते भी क्याउन्होंने ही तो वह चीज़ मुझे खरीद कर दी थी! ताज्जुब की बात कि कपड़ों को लेकर मेरा दीवानापन जल्द ही दूर हो गया जितना पैसा मैं अपने बैंक खाते से बाहर रख पाता वह सब डाउनटाउन में पीत्ज़ा और गर्म सॉसेज सैंडविच खाने और बेसबाल और बॉलिंग गियर पर खर्च कर डाला। गर्मियों में कॉलेज जाने तक मैंने दूसरी कमीज़ नहीं खरीदी। और भी बहुतेरी उतरनें मैंने पहनीं। मेरा इकलौता स्पोर्ट्स कोट और क्लिप वाली टाईजिसमें मैंने हाईस्कूल इयरबुक की ग्रुप फोटो खिंचवाई थीदोनों ही मुझे पड़ोस के लड़के से मिले थे।

उस क्रिसमस के बारे में मैंने अनेकों बार सोचा है। जब मेरे बच्चे हुए और मैं नहीं चाहता था कि वे जल्दी बड़े हो जाएँतब माता-पिता बनने के खतरों को सराहने की नई दृष्टि मुझे मिली। आप यह कैसे कर सकते हैं कि अपने बच्चों का मार्गदर्शन करें और उसी समय उन्हें खुश भी करेंजब वे छोटे होते हैं और दुनिया में उनके हिस्से आने वाली कड़वी-मीठी बातों से अनभिज्ञ भीउस समय की खुशियों को आप कैसे तज सकते हैं। आप ऐसा नहीं कर सकते। लॉडन वेनराइट का एक गाना मुझे पसंद है जिसका शीर्षक है योर मदर एंड आई एक बाप अपने बेटे से बोल रहा हैउसे अपने तलाक़ के बारे में बताने की कोशिश कर रहा है। उसकी आखिरी पंक्ति याद करने की कोशिश कर रहा हूँ। और मुझे लगता है कि हममें से बहुतों का सच यही है। तुम्हारे माँ-बाप भी इंसान हैं और उस से ज्यादा वे कुछ नहीं हो सकते।

माइकल येट्स अर्थशास्त्र के रिटायर्ड प्रोफ़ेसर हैं और मंथली रिव्यूके पूर्णकालिक सहसम्पादक भी। अपने गृहराज्य पेन्सिल्वेनिया और पास के अन्य राज्यों के  मज़दूरों को अर्थशास्त्र पढ़ानेउन्हें यूनियनों का महत्त्व समझाने और उनके अधिकारों से परिचित कराने में येट्स का महती योगदान है। मंथली रिव्यू प्रेस द्वारा प्रकाशित  'व्हाइ यूनियंस मैटरऔर'लॉन्गर आवर्स फ़्युअर जॉब्सजैसी महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के अलावा उनका यात्रा-वृत्तान्त  'चीप मोटेल्स एंड अ हॉट प्लेटऔर संस्मरण 'इन एंड आउट ऑफ़ वर्किंग क्लासअमेरिका के प्रगतिशील हलकों में खासे मक़बूल हुए हैं। क्रिसमस के मौके पर यह दास्ताँ उन्होंने अपनी पोती तातियाना के वास्ते बयाँ की है और मूल अंग्रेज़ी में उनके ब्लॉग पर शाया हुई है। 
अनुवाद और प्रस्तुति - भारतभूषण तिवारी

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