- 'रामायण' धारावाहिक के बाद इधर टी वी पर इस तरह के मिथकीय धारावाहिक कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. अंधविश्वास और पूरी तरह सामंती तथा कबीलाई मानसिकता से भरे इन धारावाहिकों ने समाज की मानसिकता को अपने तरीके से प्रभावित तो किया ही है साथ में वह संकटों से घिरी इस व्यवस्था के लिए भी बड़े मुफीद हैं. अप्रासंगिक हो गयी जादू-टोने की किताबों से किये 'शोध' के ये परिणाम समाज के भविष्य और वर्तमान दोनों के लिए घातक हैं. जाने माने लेखक और पेशे से चिकित्सक राम प्रकाश अनंतका यह आलेख इन चमकदार धारावाहिकों के इन्हीं प्रभावों पर केन्द्रित है.
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२८ मार्च को राजस्थान के स्वामी माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी के रहने वाले एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी,भाई,पुत्र व पुत्री के साथ मिलकर ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली। उसने मरने से पहले एक विडियो बनाया और उसमें बताया कि वे लोग क्यों आत्महत्या कर रहे हैं. पुलिस छानबीन से पता चला कि वह परिवार अति धार्मिक प्रवृत्ति का था .धार्मिक आयोजनों में काफी हिस्सा लेता था, यहाँ तक कि टीवी पर भी धार्मिक सीरियल ही देखता था। वह महादेव सीरियल से बहुत प्रभावित था। बहुत से लोग ये तर्क दे सकते हैं कि महादेव सीरियल तो पूरा देश देखता है और किसी ने तो आत्महत्या नहीं की, अब वह परिवार मूर्ख था तो इसमें महादेव सीरियल का क्या दोष है।
हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं और यह विज्ञान का युग है। विज्ञान ने आज चाँद सितारों तक की दूरियां तय कर ली हैं लेकिन विडम्बना है कि तमाम तरक्की के बाद भी आज समाज की सोच आदिम सामंती संस्कृति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाई है। उसकी बड़ी वजह यह है कि शासक वर्ग ने समाज का ऐसा ताना वाना बुन रखा है कि वह अपने हित के लिए समाज की सोच को ऊपर नहीं उठने देना चाहता। यही वजह है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बाद भी समाज का पढ़ा लिखा तबका भी अपनी पुरातनपंथी सोच से बाहर नहीं आ पाया है। उसकी वजह यही है कि शासक वर्ग के पास जनता की चेतना को कुंद करने के तमाम हथियार हैं। वह चाहता है कि जनता की समझ वहीं तक विकसित हो जहां तक उसके हित में है। यह बिला वजह नहीं है कि निर्मल बाबा(और ऐसे तमाम बाबाओं)के दरबार में जनता की काफी भीड़ जुटती है,पढ़े लिखे लोग उसके बेहूदे उपायों पर विश्वास करते हैं,टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा के कार्यक्रम छाए रहते हैं।
विजुअल मीडिया का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। तमाम चैनल जिस तरह राशिफल,तंत्र-मन्त्र,बाबाओं और धार्मिक सीरियलों को परोसते हैं उसने जनता की सांस्कृतिक चेतना को मटियामेट कर दिया है और वह उसे फिर उसी आदिम युग में ले जाना चाहते हैं। ऐसे में किसी परिवार के पांच सदस्य ज़हर खाकर देवों के देव महादेव से मिलने चले जाते हैं या हज़ारों महिलाएं डाइन बता कर मार दी जाती हैं या तंत्रमन्त्र के चक्कर में लोग पड़ौसियों, जहां तक कि अपने ही बच्चों की बलि दे देते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। अन्धविश्वास से लेकर परम शक्ति यानी ईश्वर से सम्बंधित जो सीरियल टीवी पर दिखाए जाते हैं वे हमारी सांस्कृतिक चेतना को एक ही जगह ले जाते हैं परन्तु इनमें एक बहुत बड़ा अंतर है। हो सकता है एक धार्मिक व्यक्ति तंत्र मन्त्र को सही मानता हो और दूसरा ग़लत या एक धार्मिक निर्मल बाबा को ढोंगी मानता हो और आशाराम बापू का भक्त हो जबकि दूसरा आशा राम को ढोंगी मानता हो और निर्मल बाबा का भक्त हो लेकिन जो इस तरह के धार्मिक सीरियल हैं उनमें सभी धार्मिक अंधी श्रद्धा रखते हैं। इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं।
कुछ दिन पहले टीवी पर ऐसे बहुत से विज्ञापन आ रहे थे जो विशेष छूट के साथ तीन-साढ़े तीन हज़ार में लक्ष्मी यंत्र कुबेर की चाबी आदि देते थे जिसकी स्थापना के बाद खरीदने वाले का घर दौलत से भर जाएगा। बहुत से धार्मिक व्यक्ति इस पर विश्वास नहीं करते होंगे। लेकिन यही बात महादेव सीरियल में कुबेर वाले एपीसोड में दिखाया गया है जिस पर हिन्दू माइथोलोजी में विश्वास करने वाला हर व्यक्ति विश्वास करेगा।जहां तक कि उसके विश्वास करने या न करने का कोई सवाल ही नहीं उठता यह बात उसके अवचेतन में सीधे प्रवेश कर जाती है। कुबेर में अपने धन के प्रति लोभ पैदा हो जाता है। महादेव उसे फटकारते हैं कि लोगों में असंतोष बढ़ रहा है,दुनिया में जिनके पास धन है उनका दायित्व है कि वे अपना धन संसार आवश्यकताओं में लगाएं। दरअस्ल यहाँ महादेव पूंजीवाद के असमानता के अन्तर्विरोध को उसी उपदेशात्मक तरीके से हल कर देते हैं जैसे अब तक गली मोहल्ले के कथा वाचक हल करते आ रहे हैं। साथ ही वे निर्धनों को आश्वस्त करते हैं की वे अपने काम में लगे रहें उन्होंने कुबेर को डांट कर ठीक कर दिया है वह एक दिन आपके लिए भी अपना खजाना खोल देगा।
राजा- महाराजाओं के समय में लिखी गईँ ये धार्मिक कथाएं शासक वर्ग के हितों के लिए वर्तमान समाज को पुराने सामंती मूल्यों की जकडबंदी में जकड़े रखना चाहती हैं।देवताओं का राजा इंद्र है।उसमें वे सारे गुण हैं जो उस समय राजा महाराजाओं में होते थे। धूर्तता,मक्कारी,अय्याशी और हमेशा अपने राज्य के लिए चिंतित। इससे यही पता चलता है कि जिस दौर में ये कथाएँ लिखी गईं उस दौर में इन्हें इसी तरह सोचा जा सकता था। लेकिन अफ़सोसजनक यह है कि इन कथाओं का धार्मिक जनमानस में काफ़ी प्रभाव है और शासक वर्ग जनता की मानसिकता को उन्हीं सामंती मूल्यों में जकड़े रखने के लिए इन कथाओं का इस्तेमाल कर रहा है।
महादेव बार -बार यह बात दोहराते हैं कि कैलाश, उनका परिवार सिर्फ उनका परिवार नहीं है,वह संसार के लिए एक आदर्श है। सही भी है। महादेव यानी इस सृष्टि के ईश्वर को शादी और बच्चे पैदा कर परिवार बसाने की भला क्या ज़रुरत है। उन्होंने यह सब संसार के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए किया होगा। तब कुछ महिलाएं व पुरुष विवाह नाम की संस्था को स्त्री के विरुद्ध बताते हैं वे भी सही ही बताते हैं। क्योंकि महादेव ने परिवार का जो आदर्श स्थापित किया था वही अभी तक चला आ रहा है और उसे बदलने की ज़रुरत है। इस पारिवारिक व्यवस्था में महादेव विवाहित पुरुष का आदर्श हैं और पार्वती विवाहित स्त्री का। महादेव एक दूसरे ईश्वर नारायण के साथ मिलकर संसार की फर्जी चिंताओं (ध्यान रहे ईश्वर दुनिया की वास्तविक चिंताओं से निरपेक्ष है) में व्यस्त रहते हैं और पार्वती के तीन काम हैं- स्वामी के मूड को दुरुस्त रखना,बच्चों के भरण पोषण के लिए लड्डू बनाना और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना। वे एक अच्छी गृहणी की तरह हमेशा चिंतित रहती हैं कि बच्चों की सुरक्षा के लिए एक भवन का निर्माण कर लिया जाए। वे बार -बार रट लगाए रहती हैं स्वामी बच्चों की सुरक्षा के लिए भवन का निर्माण कर लिया जाए। महादेव प्रकृति के निकट रहने का आदर्श स्थापित करते हैं कि इंसान को भवन की आवश्यकता ही नहीं है। आज जब करोड़ों लोगों के सर पर मकान नहीं है उनके लिए महादेव का यह आदर्श कितना सुन्दर है। कभी कभी महादेव यह कह कर कि पार्वती तुम आदि शक्ति हो यह सन्देश देते हैं कि दिव्य शक्तियों से संपन्न ईश्वर पुरुष रूप में ही नहीं स्त्री रूप में भी होता है। लेकिन पार्वती की शक्ति का संचालन महादेव के अधीन तो है ही वे अपनी शक्ति का उपयोग तभी करती हैं जब महादेव उसकी भूमिका बना देते हैं और उनके बच्चों पर कोई गहरा संकट आने को होता है। वे दुर्गा बन कर महिषासुर को मारती हैं क्योंकि वह उनके पुत्र कार्तिकेय पर हमला करता है।वे काली का रूप धरती हैं क्योंकि हुन्ड नाम का असुर उनके भावी दामाद नहुस को मारना चाहता है। वे एक अच्छी माँ की तरह बेहद चिंतित रहते हुए नहुस को तत्काल विवाह योग्य बनाने की जिद पकड़ लेती हैं। महादेव के समझाने के बावजूद पार्वती का बार बार जिद पकड़ना समाज में प्रचलित कहावत तिरिया हठ और बाल हठ की ही पुष्टि करता है। पार्वती की जिद पर महादेव अपने जादू से दस-बारह साल के दिखाई देने वाले नहुस को विवाह योग्य पूर्ण युवा बना देते हैं। स्त्री होते हुए भी पार्वती का नहुस को विवाह योग्य बनाने के लिए इतना चिंतित होना और महादेव का उसे विवाह योग्य बना देना सामंती युग में अधिक उम्र के पुरुषों द्वारा कम उम्र की नाबालिग लड़कियों से विवाह करने की प्रवृत्ति का ही प्रतीक है। कैसी विडम्बना है की देश में जब बहस छिड़ी हुई है कि लड़की की यौन स्वीकृति की उम्र सोलह साल हो या अठारह साल हो ऐसे समय में महादेव एक कम उम्र के लडके को विवाह योग्य बना कर अपनी पुत्री जो विवाह योग्य नहीं है उससे शादी करने का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। आधुनिक युग में भी लड़कियां अच्छे पति के लिए व्रत रखती हैं महादेव सीरियल इसकी सार्थकता की पुष्टि करता है। महादेव की पुत्री बाल्यावस्था में नहुस से विवाह करने के लिए तपस्या करने चली जाती है और लक्ष्मी की पांच बहनें अपने जीजा नारायण से विवाह करने के लिए घोर तपस्या करती हैं। जो कामकाजी महिलाएं यह शिकायत करती हैं कि उनके पति घर में सहयोग नहीं करते उन्हें समझना चाहिए की महादेव और पार्वती ने यही आदर्श प्रस्तुत किया है।
महादेव जैसे सीरियल समाज की चेतना का जिस तरह क्षरण करते हैं वह समाज की सोच को सदियों पीछे ले जाते हैं। धार्मिक संस्कार किस कदर व्यक्ति की चेतना में अन्दर तक घुस जाते हैं कि व्यक्ति चेतना के स्तर पर उनसे मुक्त भी हो जाए तब भी अवचेतन से ये संस्कार आदत के रूप में प्रदर्शित होते रहते हैं और व्यक्ति को उसका पता भी नहीं चलता। लोग डॉक्टर,इंजीनियर,वैज्ञानिक बन जाते हैं फिर भी उनकी सोच इन्हीं संस्कारों की वजह से एक अनपढ़ अन्धविश्वासी व्यक्ति की सोच से ऊपर नहीं उठ पाती।उनकी इस सोच को बनाए रखने में रामायण,महाभारत,महादेव जैसे सीरियलों का बड़ा योगदान है।