हम गैर को सतायेंगे गुजरात की तरह !
गुजरात माडल की बात ऐसे की जा रही है मानो विकास नाम की चिड़िया लाशों से दाना-पानी लेती हो फिर भी पूज्य है. पुरानी बातें भुलाने की बातें कुछ यों की जाती हैं जैसे वह कई सदी पुरानी बात हो. बाबर का बदला...
View Articleदुनिया को नर्क बना रखा है देवों के देव महादेव ने
'रामायण' धारावाहिक के बाद इधर टी वी पर इस तरह के मिथकीय धारावाहिक कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं. अंधविश्वास और पूरी तरह सामंती तथा कबीलाई मानसिकता से भरे इन धारावाहिकों ने समाज की मानसिकता को अपने...
View Articleकम्यूनिस्ट घोषणा पत्र – सर्वहारा की ऐतिहासिक उपलब्धि
मई दिवस के अवसर पर सभी साथियों का जनपक्ष की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. यह दिन हम सर्वहाराओं की जीत और संकल्प का दिन है. वह दिन, जब हम एक बेहतर दुनिया के निर्माण की मुश्किल लड़ाई के लिए एक बार फिर...
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आलेख:हिन्दी सिनेमा: प्रतिरोध की संस्कृति हाषिए का समाज-जितेन्द्र विसारियाकला और विज्ञान का अद्भुत संगम और बीसवीं सदी के कुछ विशिष्ट अविष्कारों में से एक ‘सिनेमा’ ने अपने शैशवकाल से ही व्यक्ति और समाज...
View Articleनौसेना विद्रोह-हंगल साहब-गांधी जी
सुरेन्द्र मनन का यह स्मृतिरेख कथन पत्रिका में छपा है. इसमें ए के हंगल ने नौसेना विद्रोह के दौर के राजनीतिक-सामाजिक माहौल पर विस्तार से और बहुत रोचक तरीके से बात की है. यहाँ यह लेख पत्रिका की सम्पादक की...
View Articleहिंदी सिनेमा और दलित चेतना
-जितेन्द्र विसारियाकला और विज्ञान का अद्भुत संगम और बीसवीं सदी के कुछ विशिष्ट अविष्कारों में से एक ‘सिनेमा’ ने अपने शैशवकाल से ही व्यक्ति और समाज को अपने सम्मोहन में बाँध रखा है और बाँधे हुए है। कहते...
View Articleआस्कर’– फ़िल्म के पुरस्कार या विदेश नीति के हथियार
रामजी तिवारीने पिछले दिनों फिल्म समीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण काम किये हैं. खासतौर से हालीवुड की चर्चित तथा पुरस्कृत फिल्मों की जो राजनीतिक समीक्षा उन्होंने प्रस्तुत की है, वह सांस्कृतिक...
View Article'विचारधारा, शक्तिकेंद्र, प्रतिमानीकरण: लेखन और जीवन'
(एक फेसबुक बहस: 18 अप्रैल 2013 - 4 मई 2013)इस बहस के बारे में दो शब्दकरीब एक पखवाड़े (18 अप्रैल 2013 से 4 मई 2013 तक) की अवधि में फेसबुक पर एक (महा )बहस चली जिसकी शुरुआत हिंदी कवि कमलेश के 'समास'...
View Article1857 और भारतीय मुसलमान
यह लेख अभी नेशनल बुक ट्रस्ट से आये शांतिमय रे की किताब के मेरे अनुवाद का हिस्सा है. 10 मई को हमने इस महान भारतीय विप्लव की वर्षगाँठ मनाई है. यह उसी महान परम्परा की याद में 1857 का महान विद्रोह जो मेरठ...
View Articleअलविदा असग़र साहब!
कारवां दुनिया और इंसानियत के वजूद, पहचान और बेहतरी के वास्ते जब तलक चलता रहेगा, तब तक मौत का कोई फरिश्ता उन्हें छू भी नहीं सकता!पलाश विश्वासप्रख्यात मुस्लिम विद्वान, प्रतिशील चिंतक, लेखक और दाऊदी बोहरा...
View Articleबेस्ट सेलर्स के बहाने कुछ जरूरी सवाल
किताबों के न बिकने के सतत प्रकाशकीय रुदन के बीच एक प्रकाशक का अपनी एक किताब को बेस्ट सेलर घोषित कर दो महीने के भीतर उस पर तीसरा आयोजन स्वागतेय तो है, लेकिन यह उल्लास कुछ सवाल खड़े करता है. उस कार्यक्रम...
View Articleसी आई ए का भूत, वर्तमान और एक ‘सु’कवि को सम्पादक का साथ : आभासी दुनिया की एक...
· यह लेख समयांतर के ताज़ा अंक में प्रकाशित हुआ है.पूरी बहस आपने जनपक्ष परपहले पढ़ी ही है. इस बीच अर्चना वर्मा का भी एक आलेखइस मुद्दे पर कथादेश में छपा है. मजेदार बात यह है कि इस लेख में कमलेश...
View Articleमुद्दा विचारधारा विरोध है - वीरेन्द्र यादव
फेसबुक पर सी आई की भूमिका को लेकर जो बहस चलीथी उसे आप जनपक्ष पर पढ़ चुके हैं. सी आई ए के ऋणी कवि कमलेश के उत्कट समर्थक और इन दिनों वाम विरोधी तथा सी आई ए द्वारा कांग्रेस फार कल्चरल फ्रीडम की...
View Articleइशरत जहाँ पर लाल्टू की एक कविता
इशरत पर कविता लाल्टू ने लिख तो ली थी २००४ में ही पर छपी २००५ में, दैनिक भाष्कर में. किसी भी तात्कालिक घटना पर, वह भी इतने सेंसेटिव विषय पर कविता लिखना हमेशा खतरों से भरा होता है. खतरा दोनों स्तर पर...
View Articleअराजनीति का दर्शन यथास्थितिवाद का दर्शन है !
साहित्य ही नहीं समाज में भी 'नो पालिटिक्स प्लीज़' एक लुभावना और प्रचलित नारा बन गया है इधर. या यों कहें कि यह फ्रेज़ इन दिनों फैशन में है. अराजनीतिक होने को बेहतर होने की तरह देखा-सुना जा रहा है....
View Articleभूमंडलीय परिवर्तन का परिप्रेक्ष्य प्रदान करने वाली दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकें
समीर अमीन की दो किताबों - 'द वर्ल्ड वी विश टू सी' और 'फ्राम कैपिटलिज्म टु सिविलाइजेशन' के बहाने वरिष्ठ कहानीकार तथा गंभीर अध्येता रमेश उपाध्याय ने पूँजीवाद के वर्चस्व जमाते जाने के साथ आये भूमंडलीय...
View Articleअर्चना वर्मा के कथादेश में छपे लेख पर वीरेन्द्र यादव का प्रतिवाद
समास में दिए गए साक्षात्कार में कवि कमलेश के सी आई ए समर्थन वाले बयान और उसके बाद चली बहस से आप परिचित हैं ही. इसी क्रम में अर्चना वर्मा ने उस पूरी बहस को 'बचकाना' जैसा बताते हुए और कमलेश के बयान को...
View Articleपढ़िए गीता बनिए सीता: साक्षरता एवं जेंडर अनुपात के परिसंबंध - प्रज्ञा जोशी
स्त्री सशक्तीकरण की प्रक्रिया में शिक्षा की भूमिका प्रेरक, साधन और साध्य तीनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी गयी है. उसी तरह समाज के विकास में भी शिक्षा का अहम स्थान है. समाज और देशों की भौतिक उनत्ति...
View Articleभूमंडलीय यथार्थवाद की पृष्ठभूमि
वरिष्ठ कथाकाररमेश उपाध्यायका यह लेख कथन के ताज़ा अंक में प्रकाशित है. हमारे अनुरोध पर उन्होंने इसे जनपक्ष के पाठकों के लिए उपलब्ध कराया है.-------------------------हिंदी साहित्य में, खास तौर से 1970 और...
View Articleफेसबुक और अभिव्यक्ति का जोखिम - वीरेन्द्र यादव
कँवल भारती की गिरफ़्तारी और उसके बाद अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर लेखकों के प्रतिरोध के क्रम में वीरेन्द्र यादव का यह लेख शुक्रवार के ताज़ा अंक में प्रकाशित है.फेसबुक पर टिप्पणी लिखने के कारण विगत...
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